वाहन के मेक में विसंगति पर सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला: वैध दावे को खारिज करना उचित नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि केवल वाहन के मेक में विसंगति होना किसी वैध दावे को खारिज करने का आधार नहीं हो सकता, यदि वाहन का पंजीकरण नंबर और अन्य मुख्य विवरण सुसंगत और सही ढंग से उल्लिखित हों। यह फैसला वाहन दुर्घटना मुआवजा दावों में कानूनी स्पष्टता प्रदान करता है।
मामला और पृष्ठभूमि:
इस मामले में, मोटर दुर्घटना दावा ट्रिब्यूनल (एमएसीटी) ने एक दुर्घटना पीड़ित को मुआवजा प्रदान किया था। हालांकि, कर्नाटक हाईकोर्ट ने ट्रिब्यूनल के फैसले को इस आधार पर खारिज कर दिया कि दावे में वाहन के मेक का उल्लेख गलत था। टाटा स्पेसियो के स्थान पर टाटा सूमो का उल्लेख एक विसंगति के रूप में देखा गया, जबकि वाहन का पंजीकरण नंबर और अन्य महत्वपूर्ण विवरण सही थे।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला:
जस्टिस जे.के. माहेश्वरी और जस्टिस अरविंद कुमार की खंडपीठ ने हाईकोर्ट के फैसले को खारिज करते हुए स्पष्ट किया कि:
“वाहन के निर्माण का मात्र गलत विवरण भी संगति या दावा याचिका खारिज करने का आधार नहीं माना जा सकता, खासकर तब जब अपराधी वाहन के पंजीकरण नंबर में कोई परिवर्तन नहीं हुआ हो।”
खंडपीठ ने यह भी कहा कि चूंकि अपराधी वाहन का रजिस्ट्रेशन नंबर KA-31/6059 वही था जो आपराधिक मामले में पाया गया था, इसलिए हाईकोर्ट का निर्णय उचित नहीं था।
सुप्रीम कोर्ट का निर्देश:
सुप्रीम कोर्ट ने एमएसीटी द्वारा प्रदान किए गए 40,000/- रुपये के मुआवजे को बहाल किया और साथ ही दावा याचिका की तिथि से 6% प्रति वर्ष की दर से ब्याज देने का निर्देश दिया। हालांकि, न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि इस न्यायालय में आने में हुई 1380 दिनों की देरी की अवधि के लिए ब्याज नहीं दिया जाएगा।
निष्कर्ष:
यह फैसला एक मिसाल कायम करता है कि तकनीकी विसंगतियों के कारण वैध दावों को खारिज नहीं किया जाना चाहिए। यह निर्णय मोटर दुर्घटना मुआवजा मामलों में न्याय की भावना को बनाए रखने में सहायक होगा।
केस शीर्षक: परमेश्वर सुब्रत हेगड़े बनाम न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड और अन्य