भारतीय घरेलू हिंसा अधिनियम (Protection of Women from Domestic Violence Act, 2005) महिलाओं को घरेलू हिंसा के खिलाफ सुरक्षित और सम्मानजनक जीवन देने के लिए एक क्रांतिकारी कानून बना है। इस अधिनियम का एक महत्वपूर्ण प्रावधान यह है कि किसी भी महिला का उसके घर या साझी गृहस्थी से अवैध रूप से बेदखल न किया जा सके। इसे “रिहाइशी अधिकार” (Right to Residence) कहा जाता है और यह अधिनियम की धारा 17 एवं धारा 19 में विस्तार से वर्णित है।
शादीशुदा महिला का रहने का अधिकार
अधिनियम के अनुसार, अगर महिला घरेलू हिंसा की शिकार होती है, तब भी उसे उस घर में रहने का अधिकार होता है जहाँ वह या तो वैवाहिक नाते से या घरेलू नाते से रहती है, चाहे उस मकान का स्वामित्व पति के पास क्यों न हो। कानून स्पष्ट करता है कि महिला को उसके घर से जबरन निकालना अपराध है और इस पर न्यायालय कठोर कार्रवाई कर सकता है।
धारा 19 के आदेश और महिलाओं का संरक्षण
इसके तहत मजिस्ट्रेट को अधिकार है कि वह घरेलू हिंसा के मामले में महिला की सुरक्षा के लिए उसे साझी गृहस्थी में रहने का आदेश दे सकता है। साथ ही, किसी दुर्व्यवहार करने वाले पुरुष सदस्य को उस घर से हटाने या उसे प्रवेश प्रतिबंधित करने का आदेश भी दिया जा सकता है। परन्तु, खास बात यह है कि महिला के खिलाफ ऐसा कोई आदेश जारी नहीं किया जाएगा जिससे उसे घर से बेदखल किया जाए।
यह प्रावधान महिलाओं को न केवल शारीरिक सुरक्षा देता है बल्कि आर्थिक एवं मानसिक सुरक्षा भी प्रदान करता है। अधिनियम के मुताबिक, अगर महिला अपने घर में रहना चाहती है तो उसे जबरन बाहर नहीं निकाला जा सकता। ऐसा करने के लिए उचित कानूनी प्रक्रिया और मजिस्ट्रेट का आदेश आवश्यक होता है।
साझा गृहस्थी का अर्थ और दायरा
“साझा गृहस्थी” से तात्पर्य उस घर से है जहाँ महिला और उसका जीवनसाथी या परिवार एक साथ रहते हैं। यह घर पति की हो या महिला की, या किसी तीसरे पक्ष की भी हो सकता है, पर महिला का घरेलू संबंध उस घर से होना जरूरी है।
अदालत के निर्णय और व्यावहारिक पहलू
हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय ने भी यह स्पष्ट किया है कि घरेलू हिंसा अधिनियम के अंतर्गत पत्नी को साझा गृहस्थी में रहने का अधिकार जरूर है, लेकिन अगर वह स्वयं आर्थिक रूप से सक्षम है और किसी अन्य स्थान पर जा सकती है, तो उसे जबरन रहने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। परन्तु इस प्रक्रिया के लिए अदालत की अनुमति अनिवार्य है। इसी प्रकार, घरेलू हिंसा के मामलों में यह अधिकार महिलाओं को त्वरित न्याय दिलाने में मदद करता है।
घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत मिलने वाले अन्य संरक्षण
“घरेलू हिंसा अधिनियम” न केवल महिला को घर में रहने का अधिकार देता है, बल्कि आर्थिक सहायता, बच्चे की अस्थायी कस्टडी, मुआवजा आदि अनेक अधिकार भी प्रदान करता है।
- आर्थिक सुरक्षा: महिला या उसके बच्चों के लिए पति या अन्य परिवारजन से आर्थिक सहायता प्राप्त करने का अधिकार।
- सुरक्षा आदेश: पति या किसी अन्य पुरुष सदस्य को घरेलू हिंसा से रोकने के आदेश।
- अस्थायी कस्टडी: जरूरत पड़ने पर बच्चे की अस्थायी देखभाल का प्रावधान।
- मुआवजा: महिला को हुए नुकसान के लिए मुआवजे का प्रावधान।
ये अधिकार महिला को घरेलू हिंसा के दुष्चक्र से बाहर निकलने में मदद करते हैं और उन्हें न्यायालय से जल्द राहत दिलाते हैं।
The Expert Vakil से कानूनी सलाह
घरेलू हिंसा के मामले में सही कानूनी सलाह लेना बहुत महत्वपूर्ण होता है। “The Expert Vakil” घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत महिलाओं के अधिकारों की पूरी जानकारी और केस लड़ने का विशेषज्ञ मार्गदर्शन प्रदान करता है। घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं को न्याय पाने, सुरक्षा आदेश दिलवाने, और अधिकार सुरक्षित करने में The Expert Vakil मदद करता है।
क्यों है यह अधिनियम महत्वपूर्ण?
भारत में घरेलू हिंसा की घटनाएं काफी अधिक हैं। महिला को उसके गृहस्थी से बेदखल करना और घरेलू हिंसा कई महिलाओं के जीवन की वास्तविकता है।
घरेलू हिंसा अधिनियम महिलाओं को न केवल सुरक्षा देता है बल्कि उन्हें मानवीय सम्मान, आर्थिक स्वतंत्रता और सामाजिक सुरक्षा भी देता है। यह कानून महिलाओं को सशक्त बनाता है और उनके अधिकारों के लिए आवाज उठाता है।
निष्कर्ष
घरेलू हिंसा अधिनियम में किसी महिला का घर से बेदखल न होने का अधिकार उसकी सुरक्षा का एक महत्वपूर्ण स्तम्भ है। इसका उद्देश्य महिलाओं को अपने जीवन और सम्मान के साथ सुरक्षित रखना है। अगर कोई महिला घरेलू हिंसा का शिकार है तो उसके पास अदालत से अपने घर में रहने का अधिकार सुरक्षित है। The Expert Vakil इस कानून के प्रभावी उपयोग में सहायता प्रदान करता है।




