परिचय
आज के आधुनिक युग में लिव-इन रिलेशनशिप (Live-in Relationship) का चलन बढ़ता जा रहा है। लेकिन क्या यह कानूनी रूप से मान्य है, विशेष रूप से तब जब किसी व्यक्ति की शादी पहले से ही हो? क्या बिना तलाक लिए किसी अन्य व्यक्ति के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रहना कानूनन अपराध माना जाता है? इस लेख में हम भारतीय कानून के अनुसार इस विषय को विस्तार से समझेंगे।
लिव-इन रिलेशनशिप की कानूनी मान्यता
भारतीय कानून में लिव-इन रिलेशनशिप को अवैध नहीं माना गया है, जब तक कि यह परस्पर सहमति से दो वयस्कों के बीच है। सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न उच्च न्यायालयों के कई फैसलों में यह स्पष्ट किया गया है कि लिव-इन रिलेशनशिप अपराध नहीं है और इसे पार्टनर्स के व्यक्तिगत अधिकार के रूप में देखा जाता है।
यदि विवाह पूर्व में हो तो क्या यह अपराध होगा?
यह प्रश्न तब महत्वपूर्ण हो जाता है जब कोई विवाहित व्यक्ति बिना तलाक लिए किसी अन्य व्यक्ति के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रहने लगे। भारतीय दंड संहिता (IPC) की कुछ धाराएं इस स्थिति को दंडनीय बनाती हैं:
- धारा 494 – द्वि-विवाह (Bigamy)
- यदि कोई व्यक्ति अपनी पहली शादी के रहते हुए बिना तलाक लिए दूसरी शादी करता है, तो यह भारतीय दंड संहिता की धारा 494 के अंतर्गत अपराध है।
- हालांकि, यह केवल “शादी” के मामले में लागू होता है, लिव-इन रिलेशनशिप में यह सीधे लागू नहीं होता।
- धारा 497 – (व्यभिचार – Adultery) [अब निष्प्रभावी]
- पहले, यह धारा किसी विवाहित पुरुष को किसी अन्य विवाहित महिला के साथ संबंध बनाने पर अपराध मानती थी।
- हालांकि, 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने इस धारा को असंवैधानिक करार दिया और इसे हटा दिया। अब यह किसी भी व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक मामला नहीं बनता।
पारिवारिक और सामाजिक प्रभाव
कानूनी स्थिति अलग हो सकती है, लेकिन सामाजिक और नैतिक दृष्टिकोण से यह विषय विवादास्पद रहता है। कई मामलों में, परिवार और समाज इसे नैतिक रूप से गलत मान सकते हैं, जिससे व्यक्तिगत और कानूनी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
क्या पत्नी या पति आपराधिक मामला दर्ज कर सकते हैं?
हालांकि व्यभिचार अब अपराध नहीं है, लेकिन यदि किसी विवाहित व्यक्ति का लिव-इन रिलेशनशिप उनकी शादीशुदा ज़िंदगी को प्रभावित करता है, तो पीड़ित पक्ष परिवार न्यायालय में विवाह विच्छेद (Divorce) के लिए अर्जी दे सकता है। साथ ही, पति या पत्नी धारा 498A (दहेज उत्पीड़न) और घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत मानसिक उत्पीड़न का मामला दर्ज कर सकते हैं।
क्या पत्नी या पति संपत्ति अधिकार या भरण-पोषण का दावा कर सकते हैं?
यदि कोई पुरुष बिना तलाक लिए किसी अन्य महिला के साथ लिव-इन में रहता है, तो उसकी पहली पत्नी गुजारा भत्ता (Maintenance) के लिए न्यायालय में दावा कर सकती है।
न्यायालय के प्रमुख निर्णय
- सुप्रीम कोर्ट ने कई मामलों में लिव-इन रिलेशनशिप को मान्यता दी है, लेकिन इसे विवाह के समान दर्जा नहीं दिया है।
- 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि लिव-इन पार्टनर्स लंबे समय तक एक साथ रहे हैं, तो महिला को सुरक्षा और भरण-पोषण का अधिकार मिल सकता है।
- 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने धारा 497 को असंवैधानिक करार दिया, जिससे व्यभिचार को अपराध की श्रेणी से हटा दिया गया।
निष्कर्ष
भारतीय कानून में लिव-इन रिलेशनशिप को कानूनी मान्यता दी गई है, लेकिन जब कोई व्यक्ति पहले से विवाहित हो और बिना तलाक लिए किसी अन्य के साथ लिव-इन में रहे, तो यह कई कानूनी और नैतिक जटिलताओं को जन्म दे सकता है। यह द्वि-विवाह कानून (Bigamy Law) के अंतर्गत अपराध तो नहीं होगा, लेकिन पारिवारिक विवाद, संपत्ति अधिकार और भरण-पोषण के दावों को जन्म दे सकता है। इसलिए, किसी भी नए रिश्ते में जाने से पहले कानूनी परामर्श लेना आवश्यक है।