सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक निर्णय में घर खरीदने वालों के हितों की रक्षा करते हुए स्पष्ट किया है कि बिल्डर द्वारा समय पर मकान न देने की स्थिति में खरीददारों को अनुचित देरी के बाद संपत्ति स्वीकार करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। इतना ही नहीं, यदि बिल्डर समय सीमा का पालन करने में विफल रहता है, तो खरीददार को अपनी जमा राशि पर उचित ब्याज सहित पूरा रिफंड लेने का अधिकार होगा। यह महत्वपूर्ण फैसला जस्टिस जे.के. महेश्वरी और जस्टिस अरविंद कुमार की पीठ ने सुनाया, जो खरीददारों के अधिकारों को एक नई मजबूती प्रदान करता है।
खरीददारों को अनिश्चितकालीन इंतजार के लिए नहीं किया जा सकता मजबूर
यह मामला एक आम समस्या पर केंद्रित था, जो देश भर में हजारों घर खरीददारों को परेशान कर रही है—बिल्डरों द्वारा समय पर मकान की डिलीवरी न करना। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि खरीददारों को अपने सपनों का घर पाने के लिए अनिश्चितकाल तक इंतजार करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। अगर बिल्डर ने खरीद समझौते में तय समय सीमा का उल्लंघन किया है, तो खरीददार के पास मकान लेने से इनकार करने और अपनी जमा राशि ब्याज सहित वापस लेने का अधिकार होगा।
रियल एस्टेट में पारदर्शिता और जवाबदेही पर जोर
जस्टिस महेश्वरी और जस्टिस कुमार ने अपने फैसले में कहा कि रियल एस्टेट क्षेत्र में पारदर्शिता और जवाबदेही अत्यंत आवश्यक है। अक्सर बिल्डर झूठे आश्वासनों के सहारे खरीददारों को लंबे समय तक इंतजार करने को मजबूर करते हैं, जिससे उनकी वित्तीय और भावनात्मक स्थिति प्रभावित होती है। इस फैसले से खरीददारों को एक मजबूत कानूनी हथियार मिला है, जिससे वे बिल्डरों की मनमानी के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद कर सकते हैं।
जमा राशि पर मिलेगा उचित ब्याज
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि केवल जमा राशि लौटाना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि खरीददार को उचित ब्याज भी मिलना चाहिए ताकि वित्तीय नुकसान की भरपाई हो सके। यह फैसला उन मध्यमवर्गीय परिवारों के लिए एक बड़ी राहत है जो अपनी जिंदगी भर की कमाई लगाकर घर खरीदते हैं और बिल्डरों की लापरवाही के कारण वर्षों तक इंतजार करने को मजबूर होते हैं।
रियल एस्टेट डेवलपर्स पर बढ़ेगा दबाव
इस ऐतिहासिक निर्णय से रियल एस्टेट डेवलपर्स पर समय पर प्रोजेक्ट पूरा करने का दबाव बढ़ेगा। यह खरीददारों के अधिकारों को मजबूत करने की दिशा में एक बड़ा कदम है। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला न केवल कानूनी दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि उन परिवारों के लिए भी उम्मीद की किरण है जो अपने घर के सपने को साकार करने के लिए बिल्डरों की दया पर निर्भर रहते हैं।
निष्कर्ष
इस फैसले से यह संदेश जाता है कि यदि बिल्डर अपने वादे से मुकरता है, तो कानून खरीददारों का साथ देगा। अब खरीददारों को भरोसा है कि उनके अधिकारों की रक्षा के लिए न्यायिक तंत्र उनके साथ खड़ा है।
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