Monday, August 18, 2025
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शादी के वादे पर सहमति से बने संबंध को बलात्कार नहीं माना जा सकता: सुप्रीम कोर्ट ने POCSO केस रद्द किया

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने 4 अगस्त 2025 को एक अहम फैसले में दोहराया कि यदि दो व्यक्ति शादी के वास्तविक वादे के आधार पर आपसी सहमति से यौन संबंध बनाते हैं, तो यह स्वतः ही भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 376 के तहत बलात्कार नहीं माना जाएगा—जब तक यह सिद्ध न हो जाए कि वादा शुरू से ही झूठा था। यह टिप्पणी अदालत ने कुणाल चटर्जी के खिलाफ दर्ज POCSO और अन्य आपराधिक मामलों को खारिज करते हुए की।


मामले की पृष्ठभूमि

2022 में एक महिला ने प्राथमिकी दर्ज कराई, जिसमें आरोप था कि 15 वर्ष की उम्र में कुणाल चटर्जी ने शादी का वादा करके उसके साथ यौन संबंध बनाए। यह रिश्ता कई वर्षों तक चला, लेकिन वयस्क होने के बाद आरोपी ने कथित तौर पर शादी से इनकार कर दिया। घटना के तीन साल बाद दर्ज एफआईआर में IPC की धारा 417, 376, 506 सहपठित धारा 34 और POCSO की धारा 6 के तहत आरोप लगाए गए।


SC का विश्लेषण: देरी और साक्ष्यों की कमी

न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने पाया कि एफआईआर दर्ज करने में तीन साल से अधिक की देरी हुई, जिसका कोई संतोषजनक कारण नहीं दिया गया।

  • POCSO धारा 6 के तहत आरोप के समर्थन में कोई फोरेंसिक या चिकित्सीय साक्ष्य नहीं मिला।
  • आरोप तब सामने आए जब रिश्ते में दरार आई और शिकायतकर्ता बालिग हो चुकी थी।

शादी के वादे और सहमति पर न्यायालय की राय

अदालत ने Prathvirajan v. State (2025 SCC OnLine SC 696), Pramod Suryabhan Pawar v. State of Maharashtra (2019) 9 SCC 608 और Maheshwar Tigga v. State of Jharkhand (2020) 10 SCC 108 जैसे मामलों का हवाला दिया।
निर्णय में स्पष्ट किया गया कि:

  • शादी के वादे के आधार पर सहमति से बने यौन संबंध बलात्कार तभी माने जाएंगे जब यह सिद्ध हो कि वादा प्रारंभ से ही धोखाधड़ीपूर्ण था।
  • यहाँ शिकायतकर्ता ने स्वयं स्वीकार किया कि उसने शादी के वादे पर सहमति दी थी।

POCSO आरोपों पर संदेह

तकनीकी रूप से नाबालिग के साथ सहमति से यौन संबंध बनाना POCSO के तहत आता है, परन्तु हर मामले का मूल्यांकन तथ्यों के आधार पर होना चाहिए।

  • यहाँ कोई चिकित्सीय या वैज्ञानिक प्रमाण नहीं था जो नाबालिग अवस्था में बलात्कार सिद्ध करे।
  • आरोप पूर्वव्यापी और एक असफल रिश्ते को आपराधिक रूप देने के प्रयास जैसे लगे।

न्यायालय का अंतिम आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पर्याप्त सबूतों के बिना मुकदमा चलाना न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा।

  • IPC और POCSO दोनों के सभी लंबित आपराधिक मामले रद्द किए गए।
  • अदालत ने चेताया कि ऐसे दुरुपयोग वास्तविक पीड़ितों के मामलों की गंभीरता को कमजोर करते हैं।

दुरुपयोग के प्रति चेतावनी

अदालत ने जोर देकर कहा कि व्यक्तिगत विवादों को निपटाने के लिए IPC धारा 376 और POCSO के प्रावधानों का गलत उपयोग न किया जाए।

  • बिना ठोस कारण के देरी से दर्ज शिकायतें
  • चिकित्सीय साक्ष्य का अभाव
  • तथ्यात्मक विसंगतियाँ
    — इन सभी परिस्थितियों में शिकायतों की सावधानीपूर्वक जांच आवश्यक है।

अपीलकर्ता बनाम प्रतिवादी: कुणाल चटर्जी बनाम पश्चिम बंगाल राज्य एवं अन्य

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