दादा की स्वयं अधिग्रहीत संपत्ति पर पोते का क्या अधिकार है? एक पोते का अपने दादाजी की स्व-प्राप्त संपत्ति पर कोई जन्मसिद्ध अधिकार नहीं है। यदि वह संपत्ति उसके पिता को परिवार के विभाजन के समय कानूनी उत्तराधिकारी के रूप में आवंटित कर दी गयी हो ना की हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के तहत हमवारिस के तौर पर। दादा इस संपत्ति को जिसे चाहे उस उस व्यक्ति को स्थानांतरित कर सकता है।
यदि दादा बिना किसी वसीयत को छोड़े मृत्यु को प्राप्त हो जाते है, तो केवल उनके तत्काल कानूनी वारिस अर्थात् उनकी पत्नी, पुत्र और बेटी (बेटों) को पीछे छोड़ी गई संपत्ति के वारिस का अधिकार होगा।
जैसा कि मृतक की पत्नी, पुत्र और पुत्रियों द्वारा विरासत में मिली संपत्तियों को उनकी निजी संपत्ति के रूप में माना जाएगा, और उस संपत्ति में किसी भी अन्य को हिस्से का दावा करने का अधिकार नहीं होगा।
यदि मृत्यु के पहले दादाजी के किसी भी बेटे या बेटी की मृत्यु हो गई है, तो उनके बेटे या बेटी के कानूनी उत्तराधिकारी को वह हिस्सा मिल जाएगा जो पहले बेटे या बेटी को मिलना था।
दादा के पोते को केवल अपने पूर्वभूत पिता का हिस्सा पाने का हकदार होगा, अगर पोते के पिता जीवित हैं तो वह किसी भी हिस्से के हकदार नहीं हैं।