भारत में अक्सर यह देखा जाता है कि जब किसी व्यक्ति के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी होता है और वह पुलिस की पकड़ में नहीं आता, तो पुलिस दबाव बनाने के लिए उसके परिजनों को परेशान करती है या यहां तक कि उन्हें हिरासत में ले लेती है। यह लेख इसी अहम विषय पर केंद्रित है कि क्या ऐसा करना कानूनन सही है? क्या पुलिस किसी आरोपी के परिवार के सदस्यों को गिरफ्तार कर सकती है? आइए विस्तार से जानते हैं।
🔹 गिरफ्तारी वारंट क्या होता है?
गिरफ्तारी वारंट एक न्यायालय द्वारा जारी किया गया आदेश होता है, जिसके तहत किसी विशेष व्यक्ति को गिरफ्तार करने की अनुमति दी जाती है। यह वारंट केवल उस व्यक्ति के लिए वैध होता है, जिसके नाम पर वह जारी हुआ है।
🔹 क्या पुलिस आरोपी की जगह उसके परिजनों को गिरफ्तार कर सकती है?
नहीं, भारतीय कानून के अनुसार, किसी व्यक्ति के खिलाफ जारी वारंट के आधार पर उसके परिजनों को गिरफ्तार करना पूरी तरह से अवैध और असंवैधानिक है। संविधान का अनुच्छेद 21 हर नागरिक को “जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता” का अधिकार देता है। किसी निर्दोष व्यक्ति को केवल इसलिए गिरफ्तार करना कि उसका कोई रिश्तेदार अपराधी है, कानून का गंभीर दुरुपयोग है।
🔹 किन परिस्थितियों में परिजनों की गिरफ्तारी संभव है?
हालांकि, कुछ विशेष मामलों में पुलिस परिजनों को हिरासत में ले सकती है, लेकिन उसके लिए स्पष्ट आधार और कानूनी प्रक्रिया का पालन करना जरूरी होता है:
- यदि परिजन स्वयं अपराध में संलिप्त हों – जैसे किसी अपराध में मदद करना (abetment) या साक्ष्य छुपाना।
- यदि परिजन आरोपी को छुपाने में मदद कर रहे हों – यह धारा 212 IPC के अंतर्गत अपराध माना जाता है।
- यदि परिजन के खिलाफ अलग से FIR हो – केवल उसी स्थिति में उन्हें गिरफ्तार किया जा सकता है।
🔹 पुलिस द्वारा परिजनों को धमकाना या दबाव बनाना – क्या करें?
यदि पुलिस किसी आरोपी को पकड़ने के लिए उसके परिजनों को धमकाती है, अवैध रूप से हिरासत में लेती है या परेशान करती है, तो निम्न कदम उठाए जा सकते हैं:
✅ मानवाधिकार आयोग (NHRC) या राज्य मानवाधिकार आयोग में शिकायत करें।
✅ उच्च न्यायालय में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका (Habeas Corpus) दाखिल करें, यदि किसी को अवैध रूप से हिरासत में लिया गया है।
✅ पुलिस के खिलाफ विभागीय कार्रवाई की मांग करें।
✅ मीडिया या लोक प्रतिनिधियों की मदद लें।
🔹 सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के महत्त्वपूर्ण निर्णय
🔸 डी.के. बसु बनाम राज्य (1997) – सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि गिरफ्तारी के दौरान मानवाधिकारों की रक्षा जरूरी है।
🔸 Joginder Kumar बनाम राज्य (1994) – कोर्ट ने कहा कि केवल शक के आधार पर किसी को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता।
🔸 कई हाई कोर्ट्स ने भी निर्णय दिए हैं कि आरोपी की अनुपस्थिति में उसके परिजनों को परेशान करना संविधान का उल्लंघन है।
🔹 निष्कर्ष
पुलिस को यह अधिकार नहीं है कि वह किसी व्यक्ति के खिलाफ जारी वारंट के आधार पर उसके परिजनों को गिरफ्तार करे, जब तक कि उनके खिलाफ अलग से कानूनी आधार न हो। यदि ऐसा होता है तो यह न केवल कानून का उल्लंघन है, बल्कि व्यक्ति के मौलिक अधिकारों पर भी आघात है।
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